मुरैना-श्योपुर ( Morena-Sheopur) लोकसभा क्षेत्र से भाजपा ने अपना प्रत्याशी शिवमंगल सिंह तोमर को हफ्तों पहले ही घोषित कर दिया है लेकिन अब तक BSP- कांग्रेस का प्रत्याशी सामने नहीं आने से मुरैना-श्योपुर लोकसभा क्षेत्र में राजनेतिक चर्चाएं तेज हो गई है कि, आख़िर ये मुक़ाबला किन दिग्गजों के बीच होने वाला है।
BSP- Congress दोनो ही पार्टी प्रत्याशी घोषित करने में देरी क्यों लगा रहीं?
इस बार मुरैना- श्योपुर लोकसभा क्षेत्र से बसपा,भाजपा व कांग्रेस तीनों ही प्रमुख पार्टियों में मुकाबला कांटे का देखा जा सकता है, क्यों कि खबरें मिल रही है कि इस बार बसपा सुप्रीमो मायावती टिकट देने में कोई हड़बड़ी नहीं कर रही है और काफी सोच समझकर अपने प्रत्याशी घोषित कर रही है। और यही कारण है कि अब तक बसपा ने अपना प्रत्याशी घोषित नहीं किया है तो वहीं दूसरी ओर कांग्रेस पार्टी की तरफ से भी इस बात का इंतजार किया जा रहा है कि पहले बसपा अपना प्रत्याशी घोषित कर दे। यही मुख्य वजह है कि अब तक बसपा और कांग्रेस ने अपना प्रत्याशी मैदान में नहीं उतारा है। कांग्रेस और बसपा दोनों ही पार्टियों एक दूसरे का मुंह तांक रही है। कांग्रेस व बसपा में से कोई भी पार्टी पहले टिकट क्लियर करके जोखिम नहीं लेना चाहती हैं।
BSP- Congress से कौन हो सकता है उम्मीदवार?
इस बार बसपा और कांग्रेस दोनों ही पार्टियों से टिकट लेने वालों की लंबी कतार है बसपा की तरफ से मुख्य रूप से पूर्व विधायक बलवीर सिंह दंडोतिया(दिमनी ), पूर्व विधायक ऐड सौनेराम कुशवाह( जौरा) या फिर पिछड़ा वर्ग के किसी भी कुशवाह समाज के नेता का नाम प्रत्याशी के रूप में सामने आ सकता है। तो वहीं दूसरी तरफ कांग्रेस से, सुमावली से पूर्व विधायक नीटू सिकरवार, जौरा विधायक पंकज उपाध्याय, सबलगढ़ विधानसभा क्षेत्र से पूर्व विधायक बैजनाथ कुशवाह , और विजयपुर विधायक रामनिवास रावत का नाम है जो कांग्रेस की तरफ से चेहरा हो सकते हैं रामनिवास रावत लगातार कांग्रेस की तरफ से दो लोकसभा चुनाव हार चुके हैं।
बाद में टिकट क्लियर करने वाली पार्टी को क्या फायदा होगा?
वैसे तो पूरे देश में ही जाति आधारित चुनाव होते है लेकिन ग्वालियर- चंबल संभाग में जातीय समीकरण कुछ ज्यादा ही महत्वपूर्ण भूमिका में होते हैं। जातीय समीकरण ही जीतने वाले प्रत्याशी का फैंसला करते हैं। सूत्रों की माने तो बसपा चाहती है कि कांग्रेस किसी क्षत्रिय समाज के नेता को टिकट दे दे ताकि बसपा किसी ब्राह्मण या कुशवाह को टिकट दे दे। या फिर कांग्रेस किसी कुशवाह समाज के नेता को टिकट दे तो बसपा ब्राह्मण को टिकट दे दे।
बसपा, कांग्रेस से पहले प्रत्याशी घोषित कर के इस बात का जोखिम नहीं लेना चाहती कि अगर बसपा किसी कुशवाह समाज के नेता को टिकट दे दे, तो बाद में कांग्रेस भी किसी कुशवाह समाज के नेता को टिकट न दे दे, या फिर बसपा किसी ब्रह्मण समाज के नेता को टिकट दे दे तो उसकी बाद कांग्रेस भी किसी ब्राह्मण समाज के नेता को टिकट न दे दे। जातीय समीकरणों के हिसाब से देखें तो जो पार्टी बाद में टिकट घोषित करेगी चुनावी माहौल उसी पार्टी के पक्ष में ज्यादा रहने की संभावना है। और यही वजह है कि बाद में टिकट घोषित करने वाली पार्टी की तरफ़ जीत का आंकड़ा नजदीक रहेगा।