जातिगत घृणा का शिकार हुआ दलित युवक: बुलेट चलाने पर काट डाला हाथ
धार (मध्य प्रदेश), 13 फरवरी 2025:
जातिगत भेदभाव और हिंसा का एक और भयावह मामला मध्य प्रदेश के धार जिले से सामने आया है। यहां एक दलित युवक पर ऊंची जाति के कुछ लोगों ने सिर्फ इसलिए हमला कर दिया क्योंकि वह बुलेट मोटरसाइकिल चला रहा था। यह घटना सामाजिक असमानता और जातिगत अहंकार की जड़ें कितनी गहरी हैं, इसका जीता-जागता प्रमाण है।
क्या है पूरा मामला?
धार जिले के छोटे से गांव में रहने वाले 22 वर्षीय रमेश अहिरवार (बदला हुआ नाम) ने कुछ महीने पहले एक सेकेंड-हैंड बुलेट मोटरसाइकिल खरीदी थी। 12 फरवरी की शाम, जब वह अपने दोस्त के साथ गांव की सड़क पर बाइक चला रहा था, तभी कुछ ऊंची जाति के युवकों ने उसे रोक लिया। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, हमलावरों ने रमेश से पूछा, “तू अपनी औकात भूल गया है? हमारे सामने बुलेट लेकर चलने की हिम्मत कैसे हुई?”
रमेश ने जब इस भेदभाव का विरोध किया, तो हमलावरों ने उसे बेरहमी से पीटना शुरू कर दिया। उसके बाद तेजधार हथियार से उसका हाथ काटने की कोशिश की गई, जिससे उसका एक हाथ गंभीर रूप से घायल हो गया। स्थानीय लोगों ने जब शोर मचाया, तब हमलावर मौके से फरार हो गए।
अस्पताल में भर्ती, पुलिस पर सवाल
गंभीर रूप से घायल रमेश को पहले धार जिला अस्पताल ले जाया गया, फिर हालत बिगड़ने पर इंदौर रेफर कर दिया गया। डॉक्टरों के अनुसार, रमेश का हाथ तो बचा लिया गया है, लेकिन उसकी कलाई पर गहरे घाव के निशान हमेशा बने रहेंगे।
इस घटना की सूचना मिलने के बाद पुलिस ने मामला दर्ज कर लिया है, लेकिन अब तक किसी आरोपी की गिरफ्तारी नहीं हुई है। रमेश के परिवार का कहना है कि ऊंची जाति के दबंगों का गांव में दबदबा है, और पुलिस उन पर कोई सख्त कार्रवाई नहीं कर रही।
जातिगत उत्पीड़न का सिलसिला कब रुकेगा?
इस घटना ने एक बार फिर जातिगत भेदभाव और हिंसा को उजागर कर दिया है। सिर्फ एक बुलेट बाइक चलाने की वजह से रमेश को अपनी जान के लाले पड़ गए। यह सवाल उठता है कि क्या भारत में अब भी जाति के आधार पर लोगों को उनके अधिकारों से वंचित रखा जाएगा? क्या दलितों को सामान्य जीवन जीने का हक नहीं है?
रमेश का मामला कोई पहला नहीं है। देशभर में हर साल हजारों दलित उत्पीड़न की घटनाएं सामने आती हैं, जिनमें से अधिकांश या तो दबा दी जाती हैं या फिर न्याय की लड़ाई लंबी चलती रहती है।
अब समय आ गया है कि प्रशासन जातिगत हिंसा के मामलों में तेजी से कार्रवाई करे और दोषियों को सख्त सजा मिले। जब तक ऐसी घटनाओं पर कठोर दंड नहीं दिया जाएगा, तब तक ‘सामाजिक समानता’ सिर्फ एक सपना बना रहेगा।